async='async' crossorigin='anonymous' src='https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-3484200171307738'/> *"माँ... माँ कुछ नहीं समझती... हमेशा टोकती रहती है... उसकी वजह से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो रही है!"*

*"माँ... माँ कुछ नहीं समझती... हमेशा टोकती रहती है... उसकी वजह से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो रही है!"*

*"माँ... माँ कुछ नहीं समझती... हमेशा टोकती रहती है... उसकी वजह से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो रही है!"*
यह शब्द थे आरव के, जो अपने कमरे का दरवाज़ा जोर से पटककर बाहर निकल गया था। उसकी माँ, सुधा, चुपचाप खड़ी रहीं… होंठ कांपते रहे, पर आँखों से कोई आँसू नहीं निकला। शायद अब आँसू भी थक चुके थे।


*🌸 एक माँ की शुरुआत*

सुधा एक साधारण गाँव की महिला थीं। पति की अचानक मौत के बाद, उन्होंने मजदूरी कर-करके आरव को पढ़ाया। कभी ईंट उठाई, कभी लोगों के बर्तन मांजे, पर बेटे को स्कूल से कभी छुट्टी नहीं लेने दी।
जब लोग कहते – *“इतनी पढ़ाई का क्या करेगा तेरा बेटा?”*,
सुधा सिर्फ मुस्कुराकर कहती –
*“मेरा आरव एक दिन अफसर बनेगा… और मैं गर्व से कहूँगी – ये मेरा बेटा है।”*


*📚 स्कूल से कॉलेज तक का सफर*

आरव तेज़ था, पढ़ाई में अच्छा। सुधा ने अपना सब कुछ गिरवी रखकर उसे शहर के बड़े कॉलेज में भेजा। आरव जब शहर गया, तो सुधा रोज़ मंदिर जाती, हाथ जोड़ती —
*“हे भगवान, मेरे बेटे को कामयाब बना देना, चाहे मुझे रोटी के एक टुकड़े के लिए तरसना पड़े।”*

लेकिन शहर जाकर आरव बदलने लगा। अब उसे माँ के कपड़े पुराने लगते, उसकी भाषा शर्मिंदगी देती, उसकी आवाज़ बोझ लगती।


*💔 माँ के दिल पर घाव*

एक दिन आरव ने फोन पर कहा —
*“माँ, अब तुम मुझसे बात मत किया करो। कॉलेज में सब मुझे चिढ़ाते हैं कि तेरी माँ गाँव की गंवार लगती है।”*

माँ चुप रहीं। रात भर रोती रहीं… मगर अगली सुबह फिर मंदिर गईं –
*“हे भगवान, मेरा बेटा खुश रहे। चाहे मैं उसकी आवाज़ भी न सुन पाऊं।”*


*🩺 बीमारी और संघर्ष*

कुछ सालों बाद सुधा बीमार पड़ गईं – कैंसर हो गया था। लेकिन उन्होंने बेटे को नहीं बताया, क्योंकि उन्हें पता था कि आरव नौकरी की तैयारी कर रहा है।
उन्होंने पड़ोस की लड़की राधा से कहा –
*“अगर कभी मेरा बेटा आए, तो उसे ये चिट्ठी दे देना… शायद तब उसे मेरी ज़रूरत समझ आए।”*


*✈️ वापसी... लेकिन देर हो चुकी थी*

एक दिन आरव को गाँव से फोन आया – *“तेरी माँ अब नहीं रहीं।”*
वो भागकर आया। माँ की टूटी हुई चारपाई, पुराने चप्पल, और दीवार पर लटकी उनकी फोटो देखकर वो टूट गया।

राधा ने उसे वो चिट्ठी दी।


*💌 "वो आखिरी चिट्ठी" (माँ की कलम से)*

> "प्यारे बेटे आरव,

जब तू ये चिट्ठी पढ़ रहा होगा, तब मैं शायद इस दुनिया में नहीं रहूँगी।

मैंने तुझे बहुत परेशान किया ना? तुझे शर्मिंदा किया…
माफ़ कर देना बेटा।

तेरे पापा के जाने के बाद तू ही मेरी दुनिया बन गया था। मैंने सोचा, तुझे पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाऊँ, ताकि तुझे कभी वो दर्द न झेलना पड़े जो मैंने झेला।

तू जब मुझे 'गंवार' कहता था, तो मुझे बुरा नहीं लगता था बेटा, क्योंकि मैं जानती हूँ तू जिस ऊँचाई पर जाना चाहता है, वहाँ मेरी झोपड़ी की ममता शायद बोझ लगे।

एक बात हमेशा याद रखना —
*माँ वो दरख़्त होती है जो खुद धूप में जलती है, लेकिन बेटे की छांव नहीं हटने देती।*

मैं तुझसे कभी नाराज़ नहीं थी, और न हो सकती थी।

तेरा नाम रोशन हो… बस यही दुआ है।

— तेरी माँ, सुधा।"


*😢 पश्चाताप*

आरव उस चिट्ठी को सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
आज उसे समझ आया कि माँ की आँखें क्यों लाल रहती थीं, उनकी हथेलियाँ क्यों फटी थीं, और उनके पैरों में चप्पल क्यों नहीं थी।

वो मंदिर गया… माँ की वही पुरानी मुरझाई माला देखी और बस एक ही शब्द कह सका —
*"माँ... माफ कर दो... एक बार बस..."*



*🧠 Message (संदेश):*

माँ का दिल बहुत बड़ा होता है – वह चोट सहती है लेकिन दिखाती नहीं।

जो तकलीफ माँ सहती है, वो शायद कोई और नहीं सह सकता।

बेटा या बेटी चाहे जितने बड़े हो जाएं, माँ की ममता उनके लिए कभी छोटी नहीं होती।

*माँ को शर्मिंदा नहीं, गर्वित करें। क़द इतना बड़ा हो कि माँ का आँचल और भी ऊँचा हो जाए।*


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